समान नागरिक संहिता क्या है?
समान नागरिक संहिता से तात्पर्य धर्म जाती वर्ग से परे पुरे देश मे सभी के समान कानून लागू करना है।
उत्तराखंड के वर्तमान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने घोषणा की है कि अगर बीजेपी की सरकार आए तो समान नागरिक संहिता के लिए एक समिति का गठन किया जाएगाl
टीतब से चर्चा में है आइए जानते है कि समान नागरिक संहिता क्या है और इसके फायदे दोष और आवश्यकता के बारे मे जानने का प्रयास करेंगे।
समान नागरिक संहिता भारतीय सन्दर्भ में:-
हमारा देश एक धर्म निरपेक्ष या पंथ निरपेक्ष देश है अर्थात किसी भी धर्म मजहब या सम्प्रदाय को सरकार की तरफ़ से संरक्षण प्राप्त नहीं है फिर भी भारतीय संविधान में अलग अलग मजहब के लिए अलग-अलग कानून है।
उदहारण स्वरूप हिन्दुओ के प्रार्थना स्थलों पर सरकार टैक्स लगाती है परंतु वही प्रर्थना स्थल अगर अल्पसंख्यक समुदाय का होतो उन्हें कोई कर नहीं देना पड़ेगा।
दूसरा उदाहरण शैक्षणिक संस्थानों में भेदभाव है।
हिन्दुओ द्वारा संचालित स्कूल कॉलेज या यूनिवर्सिटी सरकारी कायदे के अंदर आयेंगे जबकि अल्पसंख्यकों द्वारा संचालित शैक्षणिक संस्थानों को आरक्षण देने और right to education जैसे कानून मानने की बाध्यता नहीं है ।
बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी इस मामले मे सबसे अच्छे उदहारण हैं।
भारत मे इसकी जरूरत क्यों ?:-
भारत एक ऐसा देश है जिसमें बहुत सारे धर्म जाति सम्प्रदाय और मजहब के लोग रहते हैं और उनकी अलग-अलग मान्यताएं हैं और अलग-अलग धार्मिक कानून हैं जो संविधान की धारा-25 के अंतर्गत मान्य भी हैं उदहारण के लिए मुस्लिमों के विवाह तलाक और गोद लेने संबंधी अलग कानून हैं जिसे शरिया कानून कहते हैं ।हालांकिरत य संविधान के भाग-4 में नीति निदेशक तत्व के अंतर्गत धारा-44 में उचित आने पर सरकार सभी ध्मों के लिए समान नागरिक संहिता लागू करने निर्देश दिया गया है। पर अभी तक किसी भी सरकार ने समान नागरिक संहिता लागू करने प्रयास नहीं किया।
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